सोमवार, 13 जुलाई 2015

जीवन

         जीवन का उद्देश्य पाना नहीं होता हैं. कुछ बनना होता हैं. हम जीते है इस संसार में एक भ्रम के साथ, जब हमे भ्रम का ज्ञान हो जाता है, तो हमारा जीवन सरलता पूर्वक जीने में आनंद आता है, जब बच्चा छोटा होता है तो साप और रस्सी में भेद नही जानता है. तो सांप का भय भी नहीं सताता, जब हम बड़े हो जाते है, तो हमे ज्ञान हो जाता की सांप और रस्सी में जानने का अंतर हो जाता हैं. साप को जानते है तो सर्प जहरीला होता का ज्ञान हमे डरता है की साप कही डस न ले, अगर सर्प की बजाय जब हम भ्रम में रस्सी को सर्प समझते है तब सर्प का ही डर लगता है.

         उसी प्रकार हमारी जीवनशैली में भी हम जिस आहार-विहार में रहते है तो भ्रम में जीते है, ये भ्रम हमारी एक मानसिक बीमारी होती है जो हमारे गलत आदर्शों के कारण संतुष्टिदायक अवस्था में जीने को मजबूर करती हैं, और एक आदत बन जाती है तो उस गलत आदत को सुधारने में बड़ी कठिनाई आती हैं.

         जब हम व्यस्क हो चुके होते हैं तो उस भ्रम में हमारी आदत विकसित हो चुकी होती है. और उस बनी हुई आदतों को तब तक छोड़ते नही की जब तक हमे बड़ी बीमारी नही लग जाती, तब तक देर हो चुकी होती हैं, बीमारी की अवस्था में हम सुधरने का पूरा प्रयास करते,  जो बीमारी से हम भुगतते उस बीमारी से हमारी औलाद नहीं ग्रसित हो उसके लिए हमे अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छी आदतों का ज्ञान देना शुरू कर देना चाहिए.  
 आओ मिलकर एक प्रयास करे, आने वाले कल के लिए हमारे बच्चे स्वस्थ और सुडोल बने !

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