बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

आधुनिक जीवन शैली


G 1. आधुनिक जमाना नई जनरेशन में शर्मा जी ने नया रेडियो ख़रीद कर गाँव में लेकर आये, रेडियो में तत्कालीन अंग्रेजी राज में रेडियो उत्पादन से फ़िल्मी गीतों का आना, बहुत अच्छा लगता था, रोचकता इतनी थी कि गाय को चारा डालना में भूल हो जाती तो पिताजी से फटकार सुननी पड़ती थी. ताज़ा समाचार सुनने वाले गाँव के लोगो को संख्या बल शर्मा जी के रेडियो के पास बढ़ जाती थी. जिसमे सुबह शाम का समयावधि निर्धारित रहती थी, और इस प्रकार आकाशवाणी के कार्यक्रम सार्वजनिक सुने जाते थे, रेडियो वाणी सुनने के लिए लोगो में आपसी भाईचारा नये रग में जमने लगता था. फिर भी पोते पोतियों को लौरिया दादा-दादी सुना ही लेती थी.

G 2. का आधुनिक जमाना आया, G 1 के संयोग से रेडियो का स्थान अब टीवी ने ले लिया, टीवी एक कक्ष में 30 - 35 लोगो का जमावड़ा घर में आने लगा, घर का पानी कम पड़ने लगा, शुरू शुरू में सब अच्छा लगता परन्तु दादा-दादी जी की आवाज़ अब सुनाई किसी को नहीं पड़ती थी, की गाय आज घर नहीं आई, कौन उसको लेने जाए.

G 3. का आधुनिक जमाना आया, घर में कमरो का विस्तार हुआ, गाय बेच दी गई, आय की बढ़ोतरी में टीवी का पति-पत्नी में निजीकरण, दादा-दादी गुज़र गये, शर्मा जी बाहर होल में बेटे-पोते अपने निजी कक्ष में टीवी कार्यक्रम देखने में मगशुल, थोड़ी दूरियाँ होनी शुरू हो गई अपने परिवार से, अब चाय पानी, नाश्ता और खाना अनियमित हो गये.

G 4. का आधुनिक जमाना आया क्या आया विज्ञान का तूफान आया दुनिया शर्मा जी के पोते की मुट्ठी में, शर्मा की हांडी फोड़ दी गई, चूल्हा-चौका आधुनिक, नाश्ता पास्ता रेडी टू ईट मेक इन मेक्डोल इन ओंन कोल, पोता विदेश में तो बेटा देश में शर्मा जी गाँव में, स्मार्ट फोन, स्मार्ट रिश्ते, शर्मा जी अन्दर ही अन्दर पिसते की क्या वो भी जमाना था, पिता जी की डाट की गाय को चारा नहीं डाला, मामला रेडियो तक ही था, और धीरे धीरे विज्ञान का ज्ञान भौतिक बढ़ा और रिस्तो का ज्ञान अभौतिक बढ़ा, वाह वाह रे जमाना सुई की नौक से हाथी कब निकला पता ही नहीं चला, पोता बीजी, बेटा राजी, दादा-दादी पाजी, चली गई रिस्तो की डोर, ग़जब आई रिस्तो की भौर, मुँह में अब नहीं दाँत, पेट में नहीं आँत, हम तो सुन लेते डाट अब हम किसे सुनाये बात, सुविधाए आ गई, चले गये संस्कार, अब पूर्वजो का रह गया तिरस्कार ! 
अब आप बता ये क्या होगा G 5 का हालात.                           

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

निर्देशन एवं परामर्श



निर्देशन और परामर्श की बात को भारत में देखा जाये तो इसकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि प्रचीनकाल से चली आ रही हैं, वैदिक कालक्रम से जिसमे रामायण कालीन 'रामायण' के रचियता जो पूर्व में एक डाकू की पृष्टभूमि से था, जो गुरु के निर्देशनुसार के परामर्शदाता के बाद रामायण को संस्कृत में लिखा था, उसी रामायण को वापस हिंदी में अनुवादित किया गोस्वामी तुलसीदास ने. 5000 वर्ष पूर्व महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन भ्रमित हुआ तो श्री कृष्ण भगवान में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और जीवनशैली के लिए अपनें कर्तव्य मार्ग के लिए विचलित होने पर गीता ज्ञान दिया. इस भ्रमित अर्जुन ने कृष्ण से निर्देशन और परामर्श से युद्ध का निर्णय लिया और अपने युद्ध को कुशलतापूर्वक जीता. तब से ही इस गीता ज्ञान की रचना का निर्माण हुआ. इस प्रकार से भारत में ऐतिहासिक पृष्टभूमि भारतीय वैदिक काल से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था चली आ रही हैं. इस गीता ज्ञान से स्वामी विवेकानंदजी ने अमेरिकावासीयो को ज्ञान दिया, जहा पर इससे पहले कभी भाई-बहिनों के नाम से सम्बोधन नहीं हुआ, स्वामी विवेकानंद के निर्देशनुसार ही अमेरिकावासीयो के साथ पुरे विश्व को शून्य के आगे दशमलव का ज्ञान मिला. जिसके स्वरूप ही दुनिया भर में आधुनिक तकनीकी ज्ञान का विकास हुआ.         

शनिवार, 15 अगस्त 2015

आत्म विश्वास

बुद्धम् शरणम् गच्छामि,
धम्मम् शरणम् गच्छामि,
संघम् शरणम्  गच्छामि .
बुद्धम् शरणम् गच्छामि,
महात्मा बुद्ध कहते है की पहलें बुद्धि की शरण में अर्थात किसी की संज्ञा को समझने के लिए बुद्धि यानि ज्ञान से उस तत्व को पहले जानना जरूरी है.
धम्मम् शरणम् गच्छामि,
पहले जब किसी तत्व के ज्ञान को बुद्धि बल से जान लिया जाता है तो जो उस ज्ञान को अपने जीवन में लागू करो.
संघम् शरणम्  गच्छामि,
जब आप उस तत्व को, उस संज्ञा को जान जाते है तो और जीवन में लागू कर देते हो तो फिर उस ज्ञान को इस संसार में बाटो तो आप सफल हो सकते है.

एकबार गौतम बुद्ध का शिष्य अपने गुरु से बोलो गुरूजी मुझे आज्ञा दें, मुझे एक वेश्या के पास जाना है. तो महात्मा बुद्ध ने उस शिष्य को आज्ञा दी जाओ भत्ते. जब शिष्य इस प्रकार की आज्ञा मांगी तो विचलित चित के सह साथियो ने कहना शुरू कर दिया - हम लोग साधू सन्यासी है, औरतो से क्या लेना देना इस प्रकार संदेहास्पद बुराइया करने लगे. समय बितता गया और छ महीनो बाद वहीं शिष्य आया की और अपनें गुरु से बोला की गुरु जी ये एक और आप की शिष्या हो गयी.
निष्कर्ष 
अर्थात् गुरु को शिष्य पर विश्वास होता है, गुरु कान का कच्चा नहीं होता और जो गुरु कान का कच्चा होता वो सफल शिष्य भी नहीं बना सकता है.
बिना बिचारे किसी भी सदस्य, संस्थान, संघ, कार्यक्रम में योग्य-योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाना विश्वसनीयता को खोना पड़ता है.         

बुधवार, 29 जुलाई 2015

बच्चों का मोटापा कारण और निवारण

आधुनिक जीवनशैली के कारण बच्चों का मोटापा होता जा रहा हैं, अधिक किलोकैलोरी युक्त आहार, आधुनिकता के संसाधनों का अधिक उपयोग के कारण श्रम रहित जीवन शैली होने से बच्चों का मोटापा होता जा रहा है, 

बच्चों में मोटापा

भारतीय स्कूली बच्चों में मोटापा होता नजर आ रहा हैं, सत्तर के दशक में अल्प पोषण के कारण बच्चों में सामान्यतया से वजन की कमी दिखाई देती थी. परन्तु वर्तमान के समय में सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों के बच्चों में मोटापा बढ़ता दिखाई दे रहा है, शहरी विधार्थियों के साथ ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों में मोटापा बढ़ रहा हैं, सरकारी स्कूलों में पर्याप्त खेल के मैदान होने से शारीरिक परिश्रम हो जाता हैं, प्राइवेट  स्कूलों में पर्याप्त खेल कूद मैदानों का अभाव होता हैं, प्राइवेट पढने वाले स्कूलों में उनके अभिभावकों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने से बच्चों को आधुनिक मनोरंजन साधन जो फोन, लेपटोप, टेबलेट और डेस्क टॉप कम्पयूटर में  इंटरनेट गेम्स् का उपयोग, वाट्स अप, फेसबुक जैसी ओनलाईन साइट्स का इस्तेमाल से शारीरिक श्रम का अभाव देखा जाता हैं, सोशियल साइट पर ज्यादातर समय बिताने के कारण बच्चों में शारीरिक परिश्रम का अभाव पाया जाता हैं, इस प्रकार के उपयोग युग की मांग होने के कारण उसका दुरुपयोग ज्यादा होता हैं, साथ सवारी वाहनों का उपयोग भी बढ़ गया हैं, स्कूल जाते समय स्कूटर, मोटर सायकल, टैक्सी के उपयोग के आवागमन के साधनों को ज्यादा उपयोग लिया जाता हैं, कुल मिलाकर आराम पसंद की जिंदगी हो गयी है जिसके कारण वर्तमान में बच्चों में मोटापा बढ़ता नजर आ रहा है, जो भविष्य में इन बच्चों के लिए ठीक नहीं हैं, आजकल बच्चों को मोटापा होने से आलस की प्रवर्ती देखी जाती हैं, भागते समय साँस चढ़ने की बीमारी दिखती हैं, उछल-कूद कर नहीं सकते, हालाँकि बौद्धिक विकास तो अच्छा होता हैं, परन्तु शारीरिक दशा से तन्दुरुस्त कम नजर आते हैं, इसलिए आधुनिक जीवन शैली के लिए उचित मार्ग दर्शन की आवश्यकता हो गयी हैं, किसी स्थानीय मनोवैज्ञानिक से परामर्शदाता का दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए.    

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

बच्चों में कुंठा के भाव

मेरा बच्चा गुस्सा क्यों करता, मेरी समझ में नही आता क्या करूँ ?
अक्सर बच्चें के माता-पिता को ये बात करते सुनते हैं, तब क्या करना चाहिए .
वर्तमान समय में बच्चों में कुंठा के भाव देखने को मिलता है, जिसका मूल कारण होता है की कुछ कठिनाइयों का सामान नहीं कर पाता, जिसका समाधान नहीं कर पाता हैं. उस समस्या का समाधान नहीं होने की वजह से बच्चें को इस अवस्था में कुंठा हो जाती हैं. जिससे गुस्सा हो जाता हैं, जिसका मनोवैज्ञानिक परीक्षण से ज्ञात होता हैं की अत्यधिक आवश्यकताओं के पूर्ति में मध्य, कुछ
1. आवश्यकता को अभी भावक पूर्ति नहीं करते,
2. उचित मांग का ज्ञान नहीं होने से कहने में हिचकिचाट,
3. गलत प्रेरणा से अनुचित मांग का पूरा नहीं होना,
4. लक्ष्य प्राप्ति में बाधा का आना,
5. उन बच्चों में ही अधिक कुंठा होती जिनकी मांग हमेशा सरलता से पूर्ति कर दी जाती हैं,
5. उन बच्चों में जिसके परिवार में आपसी समन्वय की कमी पाई जाती हैं.
काम काजी महिलाओं के बच्चों में कुंठा अधिक पायी जाती हैं,
छात्रों में छात्राओ से अधिक कुंठा पायी जाती हैं, क्योंकि छात्राओं को गुस्सा कम आता है जब की छात्रों को गुस्सा अधिक आता हैं. अगर आप का बच्चा गुस्सा, क्रोध, चिडचिडापन, क्लेश करता हो तो आप को उसकी आदत बन जाए जो एक बीमारी का रूप धारण करलें उससे पूर्व निकट किसी मनोवैज्ञानिक से परामर्शदाता से ज़रुर सम्पर्क करे. इस प्रकार कोई की समस्याओं का समाधान आसानी के किया जा सकता हैं. 

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

भ्रम में धोखा खाने से कैसे बचे !

भ्रम सभी को होता हैं, पर भ्रम से पहचान सभी को नहीं होती हैं, और जब भ्रम से पहचान होती तो वास्तविकता से पहचान हो जाती हैं, भ्रम में इंसान ढगा जाता है, भ्रम में इन्सान डर जाता हैं. कुल मिलाकर भ्रम नुकसानदायक होता हैं. अक्सर इन्सान भ्रम की वजह से अपनी जिद्द बनाये हुए रहता हैं, और अपने आप को सत्य साबित करता रहता हैं. परन्तु वास्तविक ऐसा होता नही हैं, जिद्दी किस्म के लोग अपनी बुद्धि में इतना गहरा सोच समझ लेता की जो मैं कह रहा वो ही सत्य हैं. उनका किसी दुसरो का कहा नहीं मानना एक जिद्दीपन का आचरण होता हैं, और जो इस प्रकार का होता वो वक्त बर्बाद कर रहा होता है, क्यों की वो अचेतन अवस्था में होता है. निम्न चित्र में आप को बताया जाये की इस चित्र में दो लाल रेखाए है कौन सी बड़ी कौन सी छोटी है, तो जाहिर है प्रथम बड़ी दिखेगी, और दूसरी छोटी लगेगी, जबकि ऐसा नहीं हैं, जब इन दोनों को मापनी से मापा जाए तो हकीक़त तो दोनों रेखाए समांतर हैं, इसी प्रकार से इन्सान अपनी अज्ञानता के कारण आज ठगा जा रहा है, जैसे कोई विश्वविद्यालय कोई डिग्री देता है और कोई दूसरा विश्वविद्यालय डिग्री देता है तो डिग्री का नाम तो समांतर हो सकता हैं, परन्तु उसकी मान्यता का समांतर होना उसका सत्यापन के बाद ही पता चलता है की सत्य क्या है, मान लो आप जो सोना ख़रीद रहे हो वो एक व्यापारी आप को सोना 22 कैरेट माप का दे रहा और आप से भाव 24 कैरेट का ले रहा है, जो आप को बढ़ा-चढ़ा कर बता रहा हैं. और दूसरा व्यापारी 22 कैरेट का सोना दे रहा और 22 कैरेट सोने का ही भाव ले रहा तो आप तो प्रथम वाले व्यापारी से ठगे जा रहे हो, जब की दूसरा व्यापारी आप को 22 कैरेट सोना बता कर 22 कैरेट सोना का ही पैसा ले रहा हैं. वो आप को बात बढ़ा-चढ़ा कर नहीं बोल रहा है. तो आप की पारखी नजर का होना जरूरी होता हैं. ये तब ही होगा जब आप अपना भ्रम को ज्ञान से दूर कर देंगे तो ठगे जाने से बच सकते हैं.  

सोमवार, 13 जुलाई 2015

जीवन

         जीवन का उद्देश्य पाना नहीं होता हैं. कुछ बनना होता हैं. हम जीते है इस संसार में एक भ्रम के साथ, जब हमे भ्रम का ज्ञान हो जाता है, तो हमारा जीवन सरलता पूर्वक जीने में आनंद आता है, जब बच्चा छोटा होता है तो साप और रस्सी में भेद नही जानता है. तो सांप का भय भी नहीं सताता, जब हम बड़े हो जाते है, तो हमे ज्ञान हो जाता की सांप और रस्सी में जानने का अंतर हो जाता हैं. साप को जानते है तो सर्प जहरीला होता का ज्ञान हमे डरता है की साप कही डस न ले, अगर सर्प की बजाय जब हम भ्रम में रस्सी को सर्प समझते है तब सर्प का ही डर लगता है.

         उसी प्रकार हमारी जीवनशैली में भी हम जिस आहार-विहार में रहते है तो भ्रम में जीते है, ये भ्रम हमारी एक मानसिक बीमारी होती है जो हमारे गलत आदर्शों के कारण संतुष्टिदायक अवस्था में जीने को मजबूर करती हैं, और एक आदत बन जाती है तो उस गलत आदत को सुधारने में बड़ी कठिनाई आती हैं.

         जब हम व्यस्क हो चुके होते हैं तो उस भ्रम में हमारी आदत विकसित हो चुकी होती है. और उस बनी हुई आदतों को तब तक छोड़ते नही की जब तक हमे बड़ी बीमारी नही लग जाती, तब तक देर हो चुकी होती हैं, बीमारी की अवस्था में हम सुधरने का पूरा प्रयास करते,  जो बीमारी से हम भुगतते उस बीमारी से हमारी औलाद नहीं ग्रसित हो उसके लिए हमे अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छी आदतों का ज्ञान देना शुरू कर देना चाहिए.  
 आओ मिलकर एक प्रयास करे, आने वाले कल के लिए हमारे बच्चे स्वस्थ और सुडोल बने !

बचपन से आदर्श

          बचपन व्यक्ति के जीवन का वो प्रथम पड़ाव होता जहा से सामाजिक आवश्यकता की बुनियाद के सपने देखने का अवसर होता है, समाज निर्माण की क्रिया के सपने व्यक्ति परिवार से माता-पिता से और अपने अभिभावक से प्रेरणादायक कहानियों से शुरू होता हैं.
          बचपन में एक बार जो आदर्श बच्चे के जीवन में भर जाते फिर वो जिंदगी भर अनु पालना में व्यतीत करता है, जिस प्रकार एक मेमोरी कार्ड में जो रिकार्डिग हो जाती बस फिर कितना ही स्केनिग करो फिर वो भरा गाना ही बजता है.  
         बचपन में बालक एक कोरे खेत की तरह होता है, जैसे किसी खेत की निराई-गुड़ाई करते है उस में जो खरपतवार को निकाल देते है, जिससे उस खेत की फसल उत्तम होती, ठीक उसी तरह से बच्चों को भी बुरा आचरण को दूर करके अच्छे आचरणों को सिखाना चाहिए. अच्छे सपने दिखने चाहिए. जिससे आप का बालक होनहार योग्य सफल जीवन जी सके .
         बचपन में उस बच्चों प्रतिष्ठित व्यक्ति के सपने देखने चाहिए जिन्होंने सफलता से अपना जीवन को बनाया जिससे उसको सभी जानते हैं, जैसे कोई गरीब बड़ा अमीर बना हो, कोई फ़िल्मी कलाकार अपने बलबूते पर प्रसिद्धि प्राप्त की हो, कोई मशहूर डाक्टर बना हो, कोई सफल व्यवसाय बनकर पैसा कमाया हो इस प्रकार का एक रोल मॉडल होना चाहिएं. जिसका आदर्श मानकर वो बच्चा उन आदर्शों का प्रेषण करता रहे और उसके लिए वैसी शिक्षा के अनुसार उन आदर्शों को ध्यान में रखकर उसकी नकल का अभ्यास करता रहे तो वो भी उसके जैसा आसानी से एक सफल व्यक्ति बन सकता हैं.   

रविवार, 12 जुलाई 2015

मानसिक आयु और बुद्धि लब्धि

स्टैनफ़ोर्ड - बिने  के परीक्षणों में परीक्षण द्वारा बुद्धि की गणना करने की विधि IQ विधि थी . यदि बच्चा अपने से कम आयु वाले बच्चों की परीक्षा ही पास कर पाता है तो उसकी बुद्धि कम समझी जाती है. और यदि वो अपनी आयु की निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है तो उसकी सामान्य आयु समझी जाती है. इसी प्रकार से वो बच्चा अपनी आयु से अधिक आयु वाले के लिए निर्धारित परीक्षा पास कर लेता तो तो उसकी बुद्धि क्ष्रेष्ठ समझी जाती हैं. यदि कोई बच्चा 5 वर्ष के लिए निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है तो उसकी मानसिक आयु 5 वर्ष समझी जाती है. भले ही बच्चे की वास्तविक आयु 5 वर्ष ही हो अथवा कम या ज्यादा आयु भी हो . इसी प्रकार कोई बच्चा 7 वर्ष का है और वो 8 वर्ष के निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है तो उसकी मानसिक आयु 8 वर्ष ही मानी जायेगी. यदि कोई बच्चा 11 वर्ष का है और वो 9 वर्ष के निर्धारित परीक्षा को पास करता है तो उसकी आयु 9 वर्ष ही मानी जायेगी. उपरोक्त आधार पर ये ही माना जा सकता हैं की मानसिक आयु व्यक्ति द्वारा प्राप्त विकास की सीमा की वह अभिव्यक्ति है जिसका कथन आयु विशेष में प्रत्याशित उसके कार्य निष्पादन के रूप में किया जाता है. मानसिक आयु से बालक अथवा व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता के संकेत मिलते हैं. जिस व्यक्ति या बालक की मानसिक आयु जितनी अधिक मिलेगी तो ये समझा जा सकेगा की उसका विभिन्न योग्यताओ का विकास अधिक होने का कारण ही 'मानसिक योग्यता" ही है.   
स्टर्न 1912 ने सर्व प्रथम Mental Quotient शब्द को प्रयुक्त किया था, स्टर्न का इस शब्द से अभिप्राय शारीरिक आयु के अनुसार किये गये परीक्षणों से मानसिक योग्यता का परिचय प्राप्त करना था,
टरमन Terman 1916 ने सर्व प्रथम बुद्धि के संचालन Scoring की विधि यह  बताई की बुद्धि का फलांक I.Q. की गणना करना चाहिए. मानसिक आयु में शारीरिक आयु से भाग देने तथा प्राप्त संख्या से में 100 से गुणा करके  जो मान प्राप्त होता है उसको I.Q. कहलाता हैं. यदि एक बच्चे की मानसिक आयु 12 वर्ष है और वास्तविक आयु 10 वर्ष है तो इसकी गणना इस प्रकार से करेंगे.
              MA                        12
IQ  =  ------------ * 100  = ---------- * 100  =  120
             CA                           10
I. Q.  =  Itelligence Quotient बुद्धि - लब्धि
M. A. = Mental Age मानसिक आयु
C. A . Chronological Age  वास्तविक आयु [ तैथिक आयु ]

शनिवार, 11 जुलाई 2015

आधुनिक जीवनशैली

आधुनिक युग में आज का युवा आराम पसंद और सुविधा सम्पनता से जीना चाहता है. वर्तमान का जीवन इंटरनेट की उपयोगिता से व्यस्तता में लीन रहता है. होने से आहार विहार में परिवर्तन आ गया है जिसके कारण वो अपनी भरी जवानी में बुढ़ापे का आनन्द ले रहा है. जो बीमारियाँ अपने पिता की उम्र में लगती आज वो बीमारियाँ पुत्र को साथ साथ लगने लग गई है. हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह, और तनाव की बीमारियाँ निरंतर बढ़ रही है, आज के युवा को आर्थिक संपन्नता अवम उपलब्धता की वजह आलसी जीवन हो गया गया है. ताज़ा आहार खाने की बजाय बासी कम्पनी उत्पादकों के सहारे अपना आहार पोषण करते है, कपड़े स्वयं धोने की बजाय वासिंग मशीन से धोये जाते है. पैदल भ्रमण कम हो गया है, थोडा  बहुत चलना होगा तो स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार का सहारा लिया जाता है, यदि इस प्रकार की आवश्यकताओं में कोई बाधा आती तो व्यक्ति कुंठित होता है और इस कुंठा के कारण तनावपूर्ण जीवन अनरुदी संघर्ष जीना शुरू कर देता जिससे उसका विकास अवरुद्ध हो जाता हैं. सोते समय तनाव होने से नींद में बाधा आती हैं, जिससे बढ़िया गहरी नींद आनी चाहिए वैसी नींद नहीं आती जिससे दिन में उबासी आती हैं, भोजन करने में मन नहीं लगता है. जिसके कारण शारीरिक संतुलन में गड़बड़ी आ जाती है.  शारीरिक और मानसिक असंतुलन से से भावनात्मक रिश्तों में भ्रम पैदा होता हैं. और भ्रम की वजह से दैनिक कार्यो में असंतुलन पैदा हो जाता हैं जिससे दुसरो के व्यवहार में विसंगतिया आ जाती है, इसलिए कोशिश ये रहनी चाहिए की अपना दैनिक कार्यक्रम में व्यायाम जरूरी हो और दिन भर के कार्यो की एक सारणीबद्ध जीवनशैली होना चाहिए जिसमे संतुलित भोजन भी होना जरूरी है, समय पर पर्याप्त नींद भी लेना जरूरी होता है ताकि आप सुंदरता के साथ सबलता से अपना जीवन भरपूर आनंदित जी सकें.   

स्वास्थ्य का रहस्य Health Secrets

माता के गर्भ में 
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी हैं, आकर्षण के प्रलोभन से भ्रम में अपने स्वास्थ्य को खोया उसके बाद वो अपने स्वास्थ्य को इस संसार में खोजते रहता की स्वास्थ्य का रहस्य क्या हैं. किसी भी प्राणी का शरीर का  स्वास्थ्य माता के गर्भ में नौ महीनों में बन जाता हैं. स्वास्थ्य का रहस्य प्रथम तो यही हैं, की औलाद होने से पूर्व ही गर्भ शिशु वाली माता को संतुलित पोषण आहार ही दिया जाए जिससे पुष्ट ही बच्चा पैदा हो अन्य था असंतुलित पोषणाहार से किसी पोषक तत्वों कमी या अधिकता हो सकती है. पोषक तत्वों के असंतुलन से कमजोर बच्चा पैदा होता हैं. 

बच्चा होने के बाद
माता पिता से अज्ञानता से गलत आकर्षण के कारण बच्चों को असंतुलित पोषणाहार दिया जाता है, कमजोर बच्चों में पाचन संस्थान भी कमजोर होता हैं, और इस कमज़ोरी की अवस्था में पचाने वाले भोजन की बजाय असंतुलित स्वादिष्ट भोजन जो दिया जाता है, जो किसी अनुभवियों की बजाय बाजारू बिक्री उत्पादकों के प्रलोभन से दिया जाता है. जबकि पर्याप्त प्रोटीन जो पचाने लायक हो, पर्याप्त प्राकृतिक कैल्सियम युक्त, आयरनयुक्त, विटामिनो युक्त [ खनिज ] और प्राकृतिक अवस्थाओं हो दिया जाना चाहिए. भोजन के साथ साथ मानसिक ज्ञानवान पोषण भी दिया जाना जरूरी होता है, एक अच्छी शिक्षा उस बच्चे को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करता हैं.

युवा होने के बाद 
युवा होने के साथ-साथ आदतों का विकास हो चुका होता हैं, अच्छी या बुरी जो आदत बन गयी होती उसी आदत से वो अपना भोजन ग्रहण करता है, शरीर अब तीन अवस्था से एक प्रकार का अपने पास होता हैं, दुबला-पतला [ कृश ], मोटा और सबल [ पुष्ट ] अब तीनों प्रकार के शरीर को अलग-अलग भोजन की आवश्यकता होती है, दुबले को पर्याप्त प्रोटीन युक्त, मोटे को वसा मुक्त, सबल को संतुलित आहार की आवश्यकता होती हैं. खोये हुए स्वास्थ्य को वापस प्राप्त किया जा सकता है, इसके लिए एक अच्छे प्रशिक्षित आहार विशेषज्ञ से ही परामर्श किया जाए तो आप भी एक अच्छा उर्जावान शरीर को प्राप्त कर सकते है . 
     

व्यक्तित्व मूल्य

मूल्यों के प्रकार
1. धार्मिक मूल्य religious values - भगवान में विश्वास देवी शक्तियों से डर, धार्मिक पुस्तकों में में लिखी वो नीतियाँ से विश्वास और धार्मिक मूल्य जो व्यक्ति उच्च मूल्य रखते वो पूजा-पाठ के साथ साथ तीर्थयात्री बनानेवाले होते है .
2. सामाजिक मूल्य social values लोगो ले प्रति दुआ, दया, दान, प्रेम, सहानुभूति जैसे मूल्य होते हैं. उच्च मूल्य वाले अपने हितों को अन देखा कर के जरूरत मन्दो को मदद करते हैं.
3. प्रजातांत्रिक मूल्य democratic values किसी भी भेदभाव के बिना, व्यक्ति का आदर करना, इसमे विचारों की स्वतंत्रता होती है.
4. सौन्दर्यात्मक मूल्य aestheti values सुंदरता की प्रशंसा करने वाले, कलाकार, चित्रकार, काव्य, ललित कला, सजावट से प्रेम करनेवाले, सफाई पसंद इत्यादि .
5. आर्थिक मूल्य economic values  भौतिक और धन की उपलब्धियों की इच्छा, उच्च मूल्यों वाले धनिकों को अधिक महत्व देते है, ये धन और भौतिक मूल्यों को अधिक महत्व देते हैं.
6. ज्ञान मूल्य knowledeg values इनको ज्ञान के प्रति प्रेम होता है, सैद्धांतिक नियमों की पालना, सत्य की खोज के प्रति प्रेम होना.
7. सुखवादी मूल्य hedonistic values  सुख से प्रेम करनेवाले और दर्द को तिरस्कार करनेवाले होते है. इस प्रकार उच्च मूल्य के लोग वर्तमान पर भरोसा करनेवाले भविष्य की चिंता से दूर होते है.
8. शक्ति मूल्य power values   दुसरो पर शासन करनेवाले, दुसरो पर नेतृत्व करनेवाले होते है. उच्च मूल्य वाले लोग दुसरो पर प्रभुत्व जमाने वाले होते है.  
9. स्वस्थ मूल्य health values इस प्रकार के लोग अपने शरीर को स्वस्थ बनानेवाले होते हैं, सदा संतुलित आहार विहार के धनी होते है. 

सोमवार, 6 जुलाई 2015

आदत

पालना और पलना
पालना का शाब्दिक अर्थ होता हैं, किसी एक व्यक्ति से किसी दूसरी संज्ञा हो पोषण प्रदान करना होता है. पलना किसी दूसरे से अपना पोषण करना होता अर्थात दूसरो पर निर्भर होना जैसे बच्चों का अभिभावकों पर निर्भर होना होता हैं, दो व्यक्तियों का आपस में एक के प्रति देना और दूसरे का लेना का आधार होता है. बच्चें जो ज्यातर अपने अभिभावकों से अनावश्यक वस्तुओं की मांग पूर्ति होती रहती है तो उन बच्चों की आत्म निर्भरता युवा होते आदतन एक निर्भरता वादी हो जाते और नशे की प्रवृत्ति में लिप्त हो जाते एवं आलसी हो जाते है . इस प्रकार की आदत का विकास निरन्तरता से इतना विकसित होता जिसका पता लगता तब तक देर हो चुकी होती है.   

शनिवार, 28 मार्च 2015

गुप्त रोग

गुप्त रोग = कई बार पुरुष वर्ग अपनी नादानियो के कारण हस्तमैथुन, स्वप्नं दोष, शिघ्रपतन के कारण किसी को नही बता पाने से उस बात को गुप्त रखता इस गुप्त बात का किसी को पता नही लगे इस कारण इस बीमारियों को गुप्त रोग कहते परन्तु गुप्त रोग के नाम से कोई बड़ी बीमारी नही होती सिर्फ यह हो मात्र शर्म के जो भाव होते उसका विकास ज्यादा होने से आत्म बल कमजोर हो जाता और कमजोर आत्मबल वाले किसी से अपनी बात बताने में अति विचारो के कारण निर्णय लेने में देरी करते करते एक अभ्यास हो जाता है. जो मन की बात मन से नही निकलती और वैसे तडपते जैसे जल बिन मछली. डरिये मत पहले अपनी शर्म को दूर कीजिये अगर कोई परेशानी होतो हम आप को जवानी की ग़लतियों के कारण अगर आप ने अपना जीवन बर्बाद कर दिया हो तो घबराने की अब जरूरत नहीं आप हमसे शुल्क दें कर परामर्श ले सकते हैं.