भारत में शिक्षा के स्तर

भारत में शिक्षा के प्रकार है, निम्न प्रकार से संचालित की जाती है, ये दो प्रकार से शिक्षा दी जाती व् प्राप्त की जाती है.
प्रथम सरकारी स्तर 
गरीब वर्ग के बच्चों के लिए
एक सरकारी स्तर पर शिक्षा जो केन्द्रीय सरकार से संचालित की जाती है, दूसरी राज्य सरकारों से संचालित की जाती है. इन केन्द्रीय व राज्य स्तर के शिक्षकों की भरती कठिन परीक्षा के बाद की जाती है, इनको अपने परिश्रम से अत्यधिक मासिक तनखाह मिलती है, ये प्रथम स्तर के शिक्षक होते है, जिनकी संख्या मात्र 50 % तक ही सीमित है, बाकी 50 % के आरक्षण से आरक्षित पिछड़ा वर्ग जो जातिगत से लिया जाता है, इन आरक्षण वर्ग के शिक्षको की भर्ती वोट की राजनैतिक स्तर से ही की जाती है, आरक्षित वर्ग के शिक्षकों में गुणवत्ता पूर्ण योग्यता नहीं होती है, यहाँ निम्न आय वर्ग घरो के बच्चे पढ़ाई करते है. अपर्याप्त शिक्षक लगे होते है, उसमे भी कुछ अपनी राजनैतिक पहुँच से स्कूल शिक्षण हेतु स्थान्तरण पर अस्थाई लगे होते है, इन मे से कुछ अन्य सहायक आय के लिए लगे तत्पर दीखते है, बच्चे अल्प पोषण से पीड़ित देखे जा सकते है, स्कुलो या कालेजो में शैक्षिक साधनों की कमी देखी जाती है. अपर्याप्त शिक्षक होने के बावजूद इन शिक्षकों को जनसंख्या गणना, पशु गणना, पूरक आहार वितरण भी करवाया जाता है. बच्चों के मानसिक विकास के लिए योग्य 'जीवनशैली परामर्शदाता', और आगे की शिक्षा के लिए शिक्षा 'मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता' का अभाव पाया जाता है.
द्वितीय असरकारी स्तर 
अमीर वर्ग के बच्चों के लिए 
असरकारी स्तर की शिक्षा जो अमीर घरानों के द्वारा संचालित की जाती है, यहाँ वो शिक्षक पढ़ाने आते जो सरकारी भर्ती में असफल हुए हो, वो शिक्षक पढ़ते है, फिर भी यहाँ पढ़ाई की गुणवत्ता होती है, शिक्षकों को अपर्याप्त मासिक वेतन मिलता है, फिर भी बेरोज़गारी से बेहतर समझ के अच्छी पढ़ाई कराते है, यहाँ पढने वाले बच्चे अमीर घरो के होते है, इन लड़कों में अति पोषण से प्रभावित दीखते है, यहाँ व्यापारी वर्ग, सरकारी वर्ग के अभिभावकों के बच्चों के साथ साथ विशेष मजेदार बात की सरकारी स्कुलो के शिक्षकों के बेटे-बेटिया इन असरकारी शिक्षण संस्थानों में पढने आते है. यहाँ के शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त आधुनिक शिक्षण व्यवस्था ये होती है, प्रायोगिक कक्षा सुव्यवस्थित होती है, बच्चों के मानसिक विकास के लिए योग्य 'जीवनशैली परामर्शदाता', आगे की शिक्षा के लिए 'शिक्षा मनोवैज्ञानिक' परामर्शदाता का भाव  से परामर्श उपलब्ध रहता है. यहाँ गरीब घर के बच्चों को पढ़ना संभव नहीं होता हैं.

विश्व मंच पर 
सरकारी स्तर की बजाय असरकारी स्तर के पढ़े लिखे विधार्थी विश्व के अनेक शहरो में अपने शिक्षा की गतव्य लाभ दे कर अपना जीवन यापन करते है,

ये विश्लेषण वर्तमान का है,
[ ईस्वी सन 1980 से  पूर्व का कोई लेना देना नहीं ]

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