शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

लक्ष्य

योजना किसी  भी लक्ष्य कार्य के लिए की जाती हैं, कार्य शिक्षा का प्रथम महत्वपूर्ण होता हैं, शिक्षा प्राप्ति के लिए भी योजना बनाना जरूरी हैं योजना बनाने से पूर्व अभिवृति और बुद्धि परीक्षण का होना जरूरी हैं. बुद्धि परीक्षण शिक्षा मनोविज्ञानी ही परीक्षण करके आप को कौन सी शिक्षा का पाठ्यक्रम लेना की सलाह देता हैं. आप की रूचि अभिवृति का परीक्षण और किस प्रकार का व्यवसाय में आप सफल होंगें का परीक्षण से मार्गदर्शन मिलेगा जिससे आप आपके भावी जीवन सफल बनाने में सार्थक हो सकेंगे. शीक्षा विषय प्राप्ति के बाद की योजना आपको एक अच्छा मार्गदर्शन दे सकता हैं, किसी स्थानीय शिक्षा मनोविज्ञान या नैदानिक मनोविज्ञान परामर्शदाता से परामर्श अवस्य करना चाहिए. ताकि आपकी योजना बनाने में अच्छा मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है. 

पेट दर्द

बच्चे अक्सर पेट दर्द के शिकायत करते जो जायज भी होती है, इसके लिए आवश्यकता के अनुसार निकट चिकित्सक से नैदानिक परामर्श आवश्यक होता हैं, कभी कभी बच्चा बीमारी का बहाना भी करता है जिसके पीछे कारण छिपे होते है, स्कूल की पढ़ाई, होम वर्क इत्यादि के कारण बच्चा पेट दर्द के बहाने करके आराम या आलस कर देता हैं, माता-पिता या अभिभावक इस बात को गंभीरता से नहीं लेते तो बच्चा आदतन अभ्यासी और  डरपोक हो जाता है, इस प्रकार से भीरुता से व्यक्तित्व विकास अवरोधंन हो जाता हैं.

गुरुवार, 30 जून 2016

बच्चो का आहार

हर अभिभावक को अपने बच्चे को एक स्वस्थ आहार खिलाना चाहता है, जिसमें खनिज और जैविक  अच्‍छी मात्रा युक्त हों. लेकिन शक्‍कर और मीठा [ कार्बोहाइड्रेट ] ऐसी चीज़ें हैंफल जिसमे प्राकृतिक रूप से मिठास होती है, वो आप बच्‍चे को खिला सकते  हैं. बचपन से फीका दूध ही पिलाने की आदत डालनी चाहिए, अगर बच्चे को शुरुआत से ही शक्‍कर वाली चीजें खिलाना शुरु कर देंगे तो, उसे साग-सब्‍जियां, फल या खाली दूध कभी पसंद नहीं आएगा कमजोर व् अल्प रक्त का शिकार बच्चा हो जाएगा.

6 महीने के बच्‍चे के लिए आहार में मीठा खाने में शामिल नही करे अन्यथा अधिक मात्रा में शक्‍कर खिलाई गई तो, उसे बचपन का मोटापा और भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इसलिये अभिभावक बाजारू उत्पादन खरीद करते समय ध्यान रखने की आदत खुद में रखनी चाहिये कि वह जब भी बच्‍चे के लिये कोई भी खाने की चीज़ें खरीदे, तो उसमें लगा हुआ आहार लेबल ज़रुर पढ़ जिस पर कार्बोहाइड्रेट की मात्रा निम्नस्तर की हो.जैसे - जैम, जैली, टॉफी, सॉस, सीरप या सॉफ्ट ड्रिंक आदि.
कार्बोहाइड्रेट शक्‍कर का ही स्वरूप होता हैं, जो ज्‍यादा सेवन करने से बच्‍चे की प्रतिरोध क्षमता कमजोर पड़ने लगती है, जिससे बच्‍चों को संक्रमण और अन्‍य बीमारियों घेरने लगती हैं. अनुसंधान से स्पष्ट  पता चलता है कि जो अभिभावक अपने बच्‍चों को मीठा खिलाने की आदत डालते हैं, उन बच्‍चों में आगे चल कर मोटापा, रक्त की कमी, हृदय रोग और मधुमेह जैसे बीमारी होने का खतरा पाया जाता  है. अधिक मीठा खाने से दातो में सडन पैदा होती जिससे दात खराब के साथ साथ, पाचनक्रिया कमजोर होती हैं. 


किसी प्रकार का तरल आहार में अतिरिक्त शक्कर नहीं मिलाये चाहे फल रसाहार हो, बाजारू आहार जैसे बिस्‍कुट और कुकीज़ बच्‍चों को सीमित मात्राओं में खिलाएं. जैम, जैली, टॉफी, सॉस, सीरप या सॉफ्ट ड्रिंक को अल्प मात्रा में उपयोग करे, खीर, मिल्‍कशेक या दही आदि में यथा शक्ति फलों का गूदा मिलाएँ, इससे मिठास आएगी. सब्जी में पानी मिलाकर रोटी के साथ खिलाने की आदत डाले. थोडा थोडासा तीखापन भी खिलाने की आदत डाले, जिसमें वो कभी कोई खाने में इनकार नहीं करेगा, और स्वस्थ मानसिक के साथ शारीरिक मजबूत बनेगा.

बुधवार, 29 जून 2016

आलस

आलस एक कामचोरो की पहचान होती हैं, आलस के बहुत कारण होते हैं, जिसमे आलस होने का पहला कार्य आहार का अधिक सेवन और दूसरा नशाखोरी, इस प्रकार से ये दो क्रिया मनुष्य के विकास में बाधक होती हैं, अधिक आहार खाने से स्वतः इंसान को किसी कार्य में मन नहीं लगता और नींद आने की क्रिया शुरू हो जाती हैं, दूसरा कारण नशाखोरी की वजह से कोई कार्य करने में मन नहीं लगता, एक जब तक नशा प्राप्त नहीं होता तो उसका मन नशे को प्राप्ति के लिए लगा रहता है, जब नशा प्राप्ति होता है तो उस नशे के कारण कार्य करना नहीं चाहता हैं, तीसरी कारण प्रेरणा का अभाव अथवा इर्ष्या प्रकृति का होना, प्रेरणा का अभाव से व्यक्ति व्यक्ति हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता हैं, एवं इर्ष्या भी व्यक्ति को प्रेरित करती है, की मै ही कार्य क्यों करू. चौथा कारण हर आवश्यकता की आसानी से सुलभ प्राप्ति होना. पांचवा कारण अनावश्यक पारिवारिक सहयोग, और छठा कारण मित्र मंडली इस प्रकार की ही होती हैं जो व्यसनी प्रकृति की होती जिसके कारण किसी भी कार्य करने में आलस करता हैं.

प्राप्ति

प्राप्ति का लक्ष्य
किसी विषय वस्तु की प्राप्ति के लिए आवश्यक विचार का होना जरूरी हैं, विचारोत्तेजक अवस्थाओ को लगातार कर्म प्रधान होना जरूरी है, कर्मफल इन्सान को अवश्य मिलता हैं. एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक तरफ कर्म एक तरफ इच्छा शक्ति, किसी भी कर्म की इच्छा शक्ति को जब तक क्रियान्वित नहीं करेंगे तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होगी. कर्म फल के लिए सपने देखने के बाद कर्म को ही केवल लक्ष्य मानना जरूरी होता है, लक्ष्य के बाद उस कर्म में मेहनत का निरंतरता से गमन की अवस्था में लीन होना जरूरी होता हैं, इस प्रकार से लीन होने से विषय वस्तु की प्राप्ति अवश्य होती हैं.

प्रयास

बारिश की बूँदें, भले ही छोटी हों, लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है.
ऐसे ही हमारे छोटे छोटे प्रयास निश्चित ही जिन्दगी में बडे बदलाव लाने में सक्षम हैं.
प्रयास छोटा ही सही पर, लगातार होना चाहिए .. प्रयास करना चाहिए ..

रविवार, 26 जून 2016

निर्देशन एवं परामर्श



निर्देशन और परामर्श की भारत में देखा जाये तो इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रचीनकाल से चली आ रही हैं, वैदिक काल क्रम से जिसमे रामायण क़ालीन रामायण के रचियता जो पूर्व में एक डाकू की पृष्ठभूमि से था, निर्देशनुसार के परामर्शदाता के बाद रामायण को संस्कृत में लिखा था, उसी रामायण को पुनः हिंदी में अनुवादित किया गोस्वामी तुलसीदास ने। 5000 वर्ष पूर्व महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन भ्रमित हुआ तो श्री कृष्ण भगवान में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और जीवनशैली के लिए अपने कर्तव्य मार्ग के लिए विचलित होने पर गीता ज्ञान दिया। इस भ्रमित अर्जुन ने कृष्ण से निर्देशन और परामर्श से युद्ध का निर्णय लिया और अपने युद्ध को कुशलतापूर्वक जीता। तब से ही इस गीता ज्ञान की रचना का निर्माण हुआ। इस प्रकार से भारत में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारतीय वैदिक काल से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था चली आ रही हैं। इस गीता ज्ञान से स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिकावासीयो को ज्ञान दिया, जहा पर इससे पहले कभी भाई-बहनों के नाम से संबोधन नहीं हुआ, स्वामी विवेकानंद के निर्देशनुसार ही अमेरिकावासीयो के साथ पूरे विश्व को शून्य के आगे दशमलव का ज्ञान मिला। जिसके स्वरूप ही दुनियाभर में आधुनिक तकनीकी ज्ञान का विकास हुआ।