बुधवार, 29 जून 2016

प्राप्ति

प्राप्ति का लक्ष्य
किसी विषय वस्तु की प्राप्ति के लिए आवश्यक विचार का होना जरूरी हैं, विचारोत्तेजक अवस्थाओ को लगातार कर्म प्रधान होना जरूरी है, कर्मफल इन्सान को अवश्य मिलता हैं. एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक तरफ कर्म एक तरफ इच्छा शक्ति, किसी भी कर्म की इच्छा शक्ति को जब तक क्रियान्वित नहीं करेंगे तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होगी. कर्म फल के लिए सपने देखने के बाद कर्म को ही केवल लक्ष्य मानना जरूरी होता है, लक्ष्य के बाद उस कर्म में मेहनत का निरंतरता से गमन की अवस्था में लीन होना जरूरी होता हैं, इस प्रकार से लीन होने से विषय वस्तु की प्राप्ति अवश्य होती हैं.

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