बुधवार, 29 जुलाई 2015

बच्चों में मोटापा

भारतीय स्कूली बच्चों में मोटापा होता नजर आ रहा हैं, सत्तर के दशक में अल्प पोषण के कारण बच्चों में सामान्यतया से वजन की कमी दिखाई देती थी. परन्तु वर्तमान के समय में सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों के बच्चों में मोटापा बढ़ता दिखाई दे रहा है, शहरी विधार्थियों के साथ ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों में मोटापा बढ़ रहा हैं, सरकारी स्कूलों में पर्याप्त खेल के मैदान होने से शारीरिक परिश्रम हो जाता हैं, प्राइवेट  स्कूलों में पर्याप्त खेल कूद मैदानों का अभाव होता हैं, प्राइवेट पढने वाले स्कूलों में उनके अभिभावकों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने से बच्चों को आधुनिक मनोरंजन साधन जो फोन, लेपटोप, टेबलेट और डेस्क टॉप कम्पयूटर में  इंटरनेट गेम्स् का उपयोग, वाट्स अप, फेसबुक जैसी ओनलाईन साइट्स का इस्तेमाल से शारीरिक श्रम का अभाव देखा जाता हैं, सोशियल साइट पर ज्यादातर समय बिताने के कारण बच्चों में शारीरिक परिश्रम का अभाव पाया जाता हैं, इस प्रकार के उपयोग युग की मांग होने के कारण उसका दुरुपयोग ज्यादा होता हैं, साथ सवारी वाहनों का उपयोग भी बढ़ गया हैं, स्कूल जाते समय स्कूटर, मोटर सायकल, टैक्सी के उपयोग के आवागमन के साधनों को ज्यादा उपयोग लिया जाता हैं, कुल मिलाकर आराम पसंद की जिंदगी हो गयी है जिसके कारण वर्तमान में बच्चों में मोटापा बढ़ता नजर आ रहा है, जो भविष्य में इन बच्चों के लिए ठीक नहीं हैं, आजकल बच्चों को मोटापा होने से आलस की प्रवर्ती देखी जाती हैं, भागते समय साँस चढ़ने की बीमारी दिखती हैं, उछल-कूद कर नहीं सकते, हालाँकि बौद्धिक विकास तो अच्छा होता हैं, परन्तु शारीरिक दशा से तन्दुरुस्त कम नजर आते हैं, इसलिए आधुनिक जीवन शैली के लिए उचित मार्ग दर्शन की आवश्यकता हो गयी हैं, किसी स्थानीय मनोवैज्ञानिक से परामर्शदाता का दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए.    

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